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पत्थर के इंसान भाग - 5




जेलर मुकुन्द राठौर की ईमानदार मेहनत और समय के बदलते करवट ने नियत को मजबूर कर दिया कि वह अपने न्याय की समीक्षा करें ।

राज्यपाल महोदय ने शेखर मिलन रागिल के विषय मे जानकारी मंगाई तीनों के पिता समाज के सम्मानित एव पैसे वाले ऊंचे रसूख एव पहुंच के लोग थे साथ ही साथ मरहूम बैभव एव साहिल के पारिवारिक मित्र भी थे सभी ने महामहिम राज्यपाल पर अपने प्रभाव से दबाव बनाने कि भरपूर कोशिश किया।

महामहिम भी असमंजस की स्थिति में थे लेकिन माँ तब मुझे तेरे द्वारा बताए गए कुल देवता पर विश्वास हो गया जब साहिल की बहन सीना एव माँ सुलोचना ने महामहिम के पास स्वंय मेरी रिहाई के लिए निवेदन कर दिया उन्होंने अपने अपील में लिखा था- -
महोदय महामहिम -

यह सत्य है कि मेरे  नौजवान बेटे साहिल ने असमय अपनी जान गंवाई जो मेरा बेटा एव सीना का भाई था वह लौट कर अब कभी आकर नही कहेगा माँ बहुत भूख लगी है या दीदी आज रक्षाबंधन है क्या चाहिये तुम्हे? अपने भईया से सारे सपने विखर गए लेकिन जान्हवी के जेल में रहने से कुछ भी वापस लौटने वाला नही है मेरा बेटा जिंदा होता तो पता नही क्या करता परिवार समाज राष्ट्र का नाम रौशन करता या डुबोता लेकिन हमारा विश्वास है कि एक लड़की जिसे जीवन मे जन्म के साथ जलालत गरीबी संघर्ष के सिवा कुछ नही मिला परिवार एव अपना पेट पालने के लिए बचपन से ही शारीरिक करतब दिखाना पल पल जीवन के लिये समाज समय परिस्थितियों की चुनौती से लड़ना जिसकी नियत थी फिर भी उसने कठिन से कठिन समय मे स्वंय को सदैव सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ती रही ।

बिना किसी सुविधा के स्वयं की दृढ़ इच्छा शक्ति से पढ़ना जारी रखा आदिवासी समाज की धन्य धरोहर है और भारत मे लड़कियों के लिए आदर्श है ।

हमे विश्वास है कि यदि उसे अपराध मुक्त कर कारागार के कैद से मुक्त कर दिया जाय तो जान्हवी मेरे बेटे साहिल के भी सपनो का प्रतिनिधित्व करेगी। 

साहिल सदा कहता था माँ तेरा बेटा तेरी हर इच्छा को पूर्ण करेगा बहुत बड़ा आदमी बनेगा । 

प्रार्थी सुलोचना एव सीना 

सुलोचना के पति सुधीर को मालूम हुआ कि उसकी पत्नी एव बेटी ने उसके बेटे के कातिल को दोषमुक्त करने की अपील उसे बिना बताए कर रखी है तो घर मे हंगामा खड़ा कर दिया सुधीर  सुलोचना को बहुत प्रताड़ित करता उसने कहा कि तुमने ऐसी लड़की के लिए जो तुम्हारे ही बेटे की कातिल है को रिहा करने की अपील करके खानदान की नाक कटा  दिया वह भी ना तो जाती की है ना समाज की जंगली सभ्यता की आदिवासी जो ना भी मेरे बेटे की कातिल होती तब भी मेरे घर की लौंडी रहती तुमने तो सुधीर के रूतबे उसके खानदान के बुजुर्गों की प्रतिष्ठा को धूल में मिला दिया।

सुलोचना जब पति की प्रताड़ना की सब हदों को पार कर लिया तो बोली किस जमाने की बात कर रहे है जान्हवी आपकी बेटी सीना से किस मामले में कम है आदिवासी आदिवासी कहते जा रहे है आप और सही यह है कि जान्हवी नही गयी थी आपके बेकसूर बेटे पर पत्थर मारने आपका ही बेटा जवानी की दोस्ती यारी में बहक गया था और दुघर्टना हो गयी आपकी बेटी सीना के साथ ऐसा ही हुआ होता तो आप क्या करते ?जान्हवी ने जो भी किया वह समय के हाथों मजबूर होकर किया उसने साहिल और बैभव को मारने की कोई योजना पहले से नही बनाई थी वह तो मजबूर हाथ पैर बंधी शेखर मिलन रागिल बैभव और साहिल के कैद में भगवान भरोसे थी जंगल मे वह खुद नही गयी थी।

 यदि उसके पक्ष से पहले ही सही पैरवी हुई होती तो वह दोष मुक्त हो चुकी होती संबैधानिक व्यवस्था की न्याय प्रक्रिया धर्म भगवान सभी का सर्वमान्य सिंद्धान्त है अपने जीवन सम्मान की रक्षा का हक सबको समान है इसमें  कोई ऊंच नीच छोटा बड़ा नही होता सबके जीवन सम्मान का अपना महत्व है।

आप यह क्यो नही स्वीकार कर लेते की आपके बेटे की मति कुसंगत में मारी गयी और उसने बिन बुलाए आफत को मोल ले लिया।

इस पूरे घटनाक्रम में आदिवासी होना कहाँ से दोषी है जान्हवी तो देखा जाय तो समाज मे दबी मानसिकता के समाज आदिवासी की वह आदिकन्या है जिसने जन्म ही लिया है समय को नई चेतना जागृत के समाज निर्माण के लिये यह घटना उसके जीवन के पथ को मोड़ नही सकती चाहे हम उसकी रिहाई की अपील करते या ना करते ।

हम अपील नही भी करते तब भी वह दोष मुक्त हो जाती हमने अपील करके अपने बेटे के छड़िक अपराध को जो उससे हुआ नही सिर्फ मानसिक कल्पना की योजना मात्र थी कि पाप से मुक्त करना चाहते है सम्भव है वह अगले जन्म में कुछ बेहतर कर सकने में सक्षम हो।

आप अपनी बेटी में जान्हवी को  देखो और न्याय का साथ दीजिये समय साहिल बेटे के हानि की वेदना से आपको भी मुक्त करेगा। 

सुधीर सुलोचना सीना में महीनों द्वंद युद्ध होता रहा अंत मे सुधीर को बात समझ मे आने लगी और उसने पत्नी और पुत्री की जिद के समक्ष हथियार डाल दिये। 

महामहिम राज्यपाल ने जान्हवी को आम माफी दे दी जान्हवी की रिहाई के आदेश जेलर मुकुंद राठौर को मिला उन्होंने जान्हवी को बुलाया और कहा बहन अब तुम बहुत जल्दी कारगार के कैद से आजाद हो जाओगी लेकिन जाओगी कहाँ बाहर तुम्हारे लिए फिर वही दुनियां है  जो तुन्हें चैन से जीने नही देगी तुम्हारी माँ बूढ़ी हो चुकी है और बीमार भी उसकी जिम्मेदारी तुम्हारे अपने संकल्प सपने जान्हवी बोली साहब माँ कहती थी कुल देवी देवता मुझे विश्वास नही था आज मुझे विश्वास भी है और देख भी रही हूँ वह किसी न किसी इंसान के रूप में दिख जाता है जैसे आप ।

मुकुन्द राठौर बोले जान्हवी मैं आदिवासी तो नही हूँ एक साधारण इंसान क्या मैं तुन्हें अपनी छोटी बहन मान सकता हूँ इतना सुनते ही जान्हवी ऐसे रोने लगी जैसे वास्तव मे मुकुंद राठौर अपने बचपन मे अपनी छोटी बहन मिताली की जिद्द पर रोते देखते और उसकी खुशियो एव चाहतों को पूरा करने के लिये हर सम्भव प्रायास करते बड़ी कोशिश के बाद मुकुन्द जान्हवी को चुप करा सके ।



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3 Comments

Radhika

02-Mar-2023 09:19 PM

Nice

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shahil khan

01-Mar-2023 06:49 PM

nice

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Gunjan Kamal

17-Dec-2022 08:54 PM

बेहतरीन भाग

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